
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की साड़ियां, अलग-अलग स्टाइल से पहनी जाती है। गुजराती, बंगाली, असमिया, उड़िया, दक्षिण भारतीय, महाराष्ट्रीयन साड़ी के साथ ही लगभग हर प्रदेश की अपनी साड़ियां। साड़ी हमारे देश का पारंपरिक परिधान मानी जाती है,
देश के पारंपरिक परिधान में सबसे आगे है ‘साड़ियां’
जिसे महिलाएं शादी या पूजा के दौरान पहनना बहुत जरूरी समझती है। वैसे तो साड़ी हर किसी महिला को एक अलग सा लुक देने में सहायता करती है, इससे हर महिला की खूबसूरती अपने आप बढ़ जाती है।

कांजीवरम साड़ियां
ट्रेडिशनल रिच कलर्स में मिलने वाली ये कांजीवरम साड़ियां इंडिया की सबसे ज्यादा मशहूर और महंगी साड़ियों में शुमार है। बाकी सिल्क साड़ियों के मुकाबले ये साड़ियां काफी भारी होती हैं, क्योंकि इनमें इस्तेमाल होने वाले सिल्वर धागे गोल्ड में डिप होते हैं,
वहीं मोटिफ्स मोर और तोते से इंसपायर्ड होते हैं। इस साड़ी का सबसे बेस्ट पार्ट होता है इसका पल्लू, जो अलग से बनाकर बाद में साड़ी से जोड़ा जाता है। देश के लगभग हर क्षेत्र में यह साड़ी प्रसिद्ध है।
बनारसी साड़ियां
रेशम की साड़ियों पर बनारस में बुनाई के संग जरी के डिजाइन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी साड़ी कहते है। इसका क्रेज हमेशा ही महिलाओं में रहा है। मल्टी बनारसी साड़ी, पौड़ी, पौड़ी नक्काशी, कतान अम्बोज, टिपिकल बनारसी जंगला, एंटिक बूटा, जामेवार, कतान प्लेन, कतान फैंसी, तनछुई बनारसी आदि कई वेरायटीज में ये साड़ियां बाजार में उपलब्ध हैं।
Also Read: गर्मी के मौसम में स्टाइल और कम्फर्ट का रखें इस तरह से ध्यान
महेश्वरी साड़ियां
महेश्वर साड़ियां खासकर मध्य प्रदेश में पहनी जाती है। पहले यह सूती साड़ी ही बनाई जाती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे रेशम की भी बनाई जाने लगी है। इसका इतिहास काफी पुराना है। होल्कर वंश की महान शासक देवी अहिल्याबाई ने 250 साल पहले गुजरात से लाकर महेश्वर में कुछ बुनकरों को बसाया था और उन्हें घर, व्यापार और अन्य सुविधाएं दी थी। यही बुनकर महेश्वरी साड़ी तैयार करते थे।
चंदेरी साड़ी
चंदेरी की विश्व प्रसिद्ध साड़ियां आज भी हथकरघे पर ही बुनी जाती हैं, यही इनकी मुख्य विशेषता है। इन साड़ियों का अपना समृद्धशाली इतिहास रहा है। पहले ये साड़ियां केवल राजघराने में ही पहनी जाती थीं, लेकिन अब यह आम लोगों तक भी पहुंच चुकी हैं। एक चंदेरी साड़ी बनाने में एक बुनकर को साल भर का वक्त लगता है।
पटोला साड़ी
यह साड़ी मुख्यतः हथकरघे से बनती है। पटोला साड़ी दोनों ओर से बनाई जाती है और इसमें बहुत ही बारीक काम किया जाता है। यह रेशम के धागों से बनाई जाती है। पटोला डिजाइन और पटोला साडी. अब लुप्त होने की कगार पर है. क्योंकि इसके बुनकरों को लागत के हिसाब से कीमत नहीं मिल पाती है।
रॉ सिल्क
ये साड़ियां गोंद से बनती है, जो काफी डल और कड़ा होता है। ये सेरिसिन के कवर में और कई कलर्स में मौजूद होता है। इससे सिल्क निकालने के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
कोरा सिल्क
ये साड़ी काफी हल्की होती है। जिसे कई कलर्स और डिजाइन्स की कोरा सिल्क फैबिक से बुना जाता है। कोरा रिस्क का अपना अलग ही चार्म है।