
आज हम इस लेख में समझेंगे कि हमारे मन में बुरे विचार क्यों आते हैं और उनको कैसे हैंडल करें कई बार तो हम इतना ज्यादा अपने विचारों में उलझ जाते हैं कि हमें सर दर्द होने लगता है। आइए समझते हैं।
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि अच्छे और बुरे विचार जैसी कोई चीज नहीं होती विचार सिर्फ विचार होते हैं वो तो हम खुद अपने अनुसार ठप्पा लगा देते हैं कि यह विचार अच्छा है और यह विचार बुरा है। हम क्या करते हैं कि हमारे साथ कुछ अच्छा इंसिडेंट हो जाता है और बाद में हम उस इंसीडेंट को याद करते हैं और कहते हैं कि यह अच्छे विचार हैं और कभी हमारे साथ कुछ बुरा इंसीडेंट हो जाता है और उस इंसिडेंट से रिलेटेड हमारे मन में कोई विचार आता है, तो हम कहते हैं कि ये विचार नहीं आना चाहिए यह विचार क्यों आ रहा है यह अच्छा विचार नहीं है, यह बुरा विचार है हम यही तो करते रहते हैं और इसके अलावा करते क्या हैं।
हम अपने मन में चीजों को बांट देते हैं यह अच्छा है वह बुरा है मुझे जो चीज अच्छी लगती है वही मुझे पसंद है जो चीज मुझे अच्छी नहीं लगती वह मुझे पसंद नहीं है। हमारे भीतर पसंद नापसंद अच्छा बुरा चलता रहता है, तो फिर हम यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे भीतर बुरे विचार ना आए अच्छे विचार आएं क्योंकि विचारों को बांटना ही विचारों की जड़ है।
विचारों को ज्यादा महत्व ना दें।
हम शुरुआती स्तर पर यह कर सकते हैं कि अगर हमारे मन में बुरे विचार आ रहे हैं और उसकी वजह से काफी सारी दिक्कत हो रही है, तो हमें उन विचारों को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए। विचारों को उतना ही महत्व देना चाहिए जितना जरूरी है। जैसे: हमें कुछ काम करना है उस समय विचार करना जरूरी होता है, क्योंकि अगर हम विचार नहीं करेंगे तो हम एक्शन नहीं ले पाएंगे।
पर अगर किसी ने मुझे कुछ दिन पहले या कुछ महीनों पहले कुछ बुरा भला कह दिया और बाद में वो सब बातें जो उस व्यक्ति ने कहीं थी। वो सब हमारे मन में घूम रही हैं, तब हमें इन सब को महत्व नहीं देना चाहिए क्योंकि इन सब से कुछ नहीं होने वाला बल्कि इन सब बातों को याद कर के हम और अपने जीवन में टेंशन,गुस्सा,नाराजगी,डर,घबराहट और बढ़ा लेंगे।
खुद को ज्यादा से ज्यादा काम में व्यस्त रखाना।
जिस समय हम पूरी तरह से किसी फिजिकली काम में व्यस्त रहते हैं उस समय हमारे मन में कोई विचार नहीं चल रहे होते हैं तब हमें पुरानी बातें याद नहीं आती क्योंकि हमारा पूरा फोकस उस काम में होता है जिसको हम कर रहे होते हैं। पर जब हम अकेले होते हैं खाली बैठे होते हैं, तब मन में दुनिया भर की बातें चलती रहती है पता नहीं किस किस प्रकार के विचार आते रहते हैं क्योंकि हम खाली बैठे हैं वो कहते हैं ना।”खाली दिमाग शैतान का घर” ठीक उसी प्रकार जब हम खाली होते हैं हमारे पास कुछ करने को नहीं होता है उसी समय विचारों की वर्षा होती है और हम कहते हैं कि यह विचार क्यों आ रहे हैं मुझे ऐसे विचार नहीं आने चाहिए मैंने ऐसा क्या किया था जो मेरे मन में ऐसे बुरे विचार आ रहे हैं।
इसीलिए जितना हो सके उतना खुद को किसी भी काम में व्यस्त रखना चाहिए चाहे वह काम कोई भी हो, चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो ऐसा करने से हम अपने मन में चल रही दुनिया भर की झंझट से कुछ समय के लिए मुक्त हो सकते हैं पर यह परमानेंट तरीका नहीं है विचारों से मुक्त होने का।
खुद को जानना मतलब विचारों से हमेशा हमेशा की छुट्टी।
अभी तक हमने जो भी समझा वह सब विचारों से कुछ समय के लिए निजात पाने का साधन है। अगर हम चाहते हैं कि हमें पूरी तरह से विचारों से छुट्टी मिल जाए तो हमें खुद को जानना होगा कि “मैं कौन हूं” हमें खुद के सच को जानना होगा कि मेरे अस्तित्व की प्रकृति क्या है मैं कहां से आया हूं और कहां जाने वाला हूं।
जैसे-जैसे हम खुद के सच को जानते जाते हैं वैसे वैसे हमारे भीतर से डर, चिंता, टेंशन,घबराहट, गुस्सा, नाराजगी, चिड़चिड़ापन यह सारी चीजें खत्म होती जाती है और हम एक अलग तरह की आजादी अपने भीतर महसूस करेंगे।
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